Saturday, August 30, 2008

नैनो कार विवाद- बुद्धिजीवी"तालाब नॄत्य"

पश्चिम बंगाल के सिंगूर में उपजे टाटा के नैनो कार के विवाद ने आज हमारे देश के सामाजिक -राजनितिक परिदृश्य पर व्याप्त खालिस निजस्वार्थ की प्रमुखता को उजागर करता है .एक तरफ तो मजदूरों, किसानों और शोषित वर्ग के स्वघोषित 'godfather 'वामपंथियों का दोगलापन है कि इन बेबस कमज़ोर खेतिहरों की जमीन बिना उचित मूल्य चुकाए हथिया कर एक ऐसे उद्योग के लिए उपलब्ध करायी जिसका उस तबके के विकास पर अन्तर नही पड़ने वाला, उल्टे वो बेघर और विस्थापित होगये.ये वही महानुभाव वामपंथी ठेकेदार लोग है ,जिन्होंने मानवता के कत्ले-आम का नंगा नाच कुछ दिन पहले 'नंदीग्राम' में किया था. दूजे देश को उन्नति की ओर ले जाने का दंभ रखने वाला वह उद्योगपति वर्ग है , जो अपने दर्प में चूर कभी किसानो को डरता है तो कभी 'सर्वहारा' 'सरकार के रहनुमाओं को धमकता है। अगर टाटा का घराना सचमुच देशप्रेम से प्रेरित हो यह 'जनता की कार' का प्रोजेक्ट ले आया है , तो जमीन के मालिकों को सही मूल्य दिलवाने में पहल क्यों नही करता?



और हमारी ममता बहिन !!!!- इनको तब इन मजलूम किसानो की याद नही आई, जब इस जमीन का अधिग्रहण हो रहा था ! उस समय आन्दोलन करने से इनका सचमुच भला होता , और इस राज्य पर औधोगिक पिछडेपन के लेबल लगने से भी दो-चार नही होना पड़ता जो टाटा के वापस चले जाने से पश्चिम बंगाल पर लग सकता है। पर तब ममता बहिन को ज्यादा राजनितिक लाभ शायद नही मिलता । इसलिए वो भी अब पुर्णतः जागृत हो चुकी है ,और साथ में अमर सिंह जैसे बिना पेंदी के लोटे है ....जो दादरी में तो किसानो के विरुद्ध 'अम्बानी' के साथ थे ,पर सिंगूर में किसानो के हितैषी बन बैठे है।



कुल मिलकर यही लगता है सभी अपना अपना स्वार्थ साध रहे हैं.इस समस्या को और उलझा कार इस राज्य और इसकी जनता के भविष्य का CAMPFIRE कर सारे बुद्धिजीवी नंगा 'तालाब नृत्य' कार रहे है .