बात चाहे दलित की हो,नारी-दमन की हो या रंगभेद की,मंसा मूलतः एक व्यक्ति या व्यक्ति-समूह को दूसरे की तुलना में बेहतर/उच्चतर साबित /स्थापित करने की है...
सभी कुरीतियों और कुप्रथाओं के जड़ में कारण तो आर्थिक-सामाजिक शोषण ही है.....
उसपर धार्मिक मुलम्मा चढ़ाकर उसके प्रति प्रतिरोध को कुंद किया जान ही उद्देश्य रहा है हमेशा-हमेशा से..
सनातन काल से मनुष्य महानता के व्यामोह से ग्रसित है,और वो खुद को सभी से ऊपर अवस्थित देखना चाहता है ..
शायद खुद को खुदा घोषित कर सर्वोपरि बन जाने की जुत्सजू है...
कहीं ईश्वर/खुदा/GOD की अवधारणा ही तो नहीं है इन सबके मूल में???????
Thursday, January 21, 2010
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